पूर्व महारानी गायत्री देवी ने ढाई साल पहले मुझे दिए एक इन्टरव्यू में बताए थे अपने बचपन से जुड़े विभिन्न पहलू। यहां पेश है उस वक्त प्रकाशित उनका वह एक्सक्लूसिव साक्षात्कार।
गुरुवार, 30 जुलाई 2009
बुधवार, 29 जुलाई 2009
खामोश हुआ एक शाही सौन्दर्य
जयपुर की पूर्व महारानी और दुनिया की दस खूबसूरत महिलाओं में शुमार गायत्री देवी के दुनिया छोड़ जाने की खबर पर सहसा भरोसा नहीं हुआ। मुझे लगा मानो वो मेरे सामने है और अपने बचपन को बखूबी बयान कर रही है। इस खबर के साथ ही मेरे जहन में उनसे मुलाकात की वो सारी यादें ताजा हो आईं। लगभग आधे घण्टे की उस मुलाकात में मैं उनसे बेहद प्रभावित था। बात लगभग ढाई साल पहले की है। मुझे राजस्थान पत्रिका के परिवार परिशिष्ट के लिए किसी खास शख्सियत का इन्टव्यू करना था। दरअसल हम परिवार में एक नया कॉलम शुरू करने जा रहे थे। इस कॉलम में हम मशहूर शख्सियतों के बचपन के बारे में लिखना चाहते थे। शुरूआत हम महारानी गायत्री देवी से करना चाहते थे। इनसे साक्षात्कार करना कोई आसान काम नहीं था। दरअसल मेरी दिली ख्वाहिश भी थी उनसे मिलने की। मुझे मौका मिला और उनके खूबसूरत बचपन के दिलचस्प पहलू जानने को मिले। मुझे अच्छी तरह याद है बचपन की बात सुनते ही महारानी गायत्री देवी का चेहरा चमक उठा था। वे बोल पड़ीं - बचपन में हम भाई बहिन रोज हाथियों पर सवार होकर घूमने निकलते थे। बड़ा दिलकश नजारा होता था जब हम हाथी की सवारी करते थे। हाथियों की सवारी की बात आते ही मानो वे खो गईं अपने शाही बचपन के स्वर्णिम पलों में। उम्र के आखरी पड़ाव पर भी उनका शाही अंदाज दिलकश था। उनके आवास लिलीपुल के गार्डन में आधा घण्टे की बातचीत में वे कई बार अपने बचपन की यादों में खो गई। बचपन में रोज हाथियों पर सवार होकर गांव में घूमने की बात उन्होंने मुझे कई बार बताई। उन्हें अपने बचपन पर फख्र था और होगा भी क्यों नहीं आखिर यह एक राजकुमारी बचपन था। जब मैंने उनसे पूछा अगर उनको फिर से बचपन मिलता है तो वे किस तरह का बचपन चाहेंगी? उनका कहना था- मैं तो अपना ही बचपन चाहूंगी जो मैंने कुचबिहार में गुजारा। महारानी गायत्री देवी के साथ इस मुलाकात को मैं ताजिन्दगी नहीं भुला पाऊंगा। उनके दुनिया से रुखसत होने का समाचार मिला तो मैंने फिर से फाइल में उनका साक्षात्कार पढ़ा,उनसे बातचीत की रिकॉर्डिंग वाली कैसेट निकालकर फिर से उन्हें सुनने लगा। मुझे लगा मानो राजमाता गायत्री देवी लिलीपूल के गार्डन में बैठकर मुझे अपने बचपन से जुड़ी यादों के बारे में बताती जा रही है और मैं डायरी में इसे नोट करता जा रहा हू। कैसेट खत्म होने पर समझ आया अब तो यह बस याद है जो बाकी रहने वाली है सिर्फ जहन में।
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